सोचो तुमने और मैंने क्या पाया इन्सां हो के...

ऊपर वाले ने अपनी मोहब्बत के सदके में हम सबके लिए ये धरती बनाई थी
पर मोहब्बत के दुश्मनों ने इस पर लकीरें खींच कर सरहदें बना दी
मैं जानता हूँ वो लोग तुम्हे इस पार नहीं आने देंगे
मगर ये पवन जो तुम्हारे यहाँ से हो कर आई है
तुम्हे छू कर आई होगी
मैं इसे सांस बना कर अपने सीने में भर लूँगा

ये नदिया जिस पर झुक कर तुम पानी पिया करते हो
मैं इसके पानी से अपने प्यासे होठों को भिगो लूंगी
समझूंगी तुम्हारे होठों को छू लिया...

पंछी नदिया पवन के झोंके कोई सरहद न इन्हें रोके
सरहदें इंसानों के लिए हैं, सोचो तुमने और मैंने क्या पाया इन्सां हो के...
                                                                                         -जावेद अख्तर


Aseem Jha

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