Saturday, February 23, 2013

जहाँ कोई न हो...

रहिये अब ऐसी जगह चलकर जहाँ कोई न हो
हमसुख़न कोई न हो और हमज़बाँ कोई न हो,

बेदर-ओ-दीवार सा इक घर बनाया चाहिये
कोई हमसाया न हो और पासबाँ कोई न हो,

पड़िये गर बीमार तो कोई न हो तीमारदार
और अगर मर जाईये तो नौहाख़्वाँ कोई न हो,
                                              -मिर्ज़ा ग़ालिब

*(हमसुख़न = हमदर्द, हमज़बाँ = अपनी भाषा जानने वाला, हमसाया = साथी,
 पासबाँ = हिफाज़त करने वाला, तीमारदार = बीमार की सेवा करने वाला,
 नौहाख़्वाँ = मौत पर रोने वाला)


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