बहुत अरसा तो नहीं गुजरा,
न ही इतिहास का कोई ग्रन्थ ख़त्म हुआ है
मुझे अब भी याद है कि अक्सर,
हर राह पर...
वो तुम्हारा, मेरे हाथ को पकड़कर चलना
उन खूबसूरत झिलमिल आँखों का,
मैं स्वाभिमान था...
और वो मीठे ख्यालों में बुने किस्से...
मुझे अब भी याद हैं...
उन खूबसूरत झिलमिल आँखों का,
मैं स्वाभिमान था...
और वो मीठे ख्यालों में बुने किस्से...
मुझे अब भी याद हैं...
आज अरसो बाद भी,
तुम्हारी उँगलियों का स्नेह और स्पर्श
मुझमे शेष है...।
तुम खो नहीं सकते भीड़ और तन्हाई में,
मेरी उँगलियाँ तुमको खोज लेंगी...
No comments:
Post a Comment