Sunday, December 9, 2012

एक ठोकर लाश पर मेरी लगाना...

अब बुलाऊँ भी तुम्हे तो तुम न आना !
टूट जाए शीघ्र जिससे आस मेरी
छूट जाए शीघ्र जिससे साँस मेरी,
इसलिए यदि तुम कभी आओ इधर तो,
द्वार तक आकर हमारे लौट जाना !

देख लूँ मै भी की तुम कितने निष्ठुर हो,
किस कदर इन आंसुओ से बेखबर हो,
इसलिए जब सामने आकर तुम्हारे,
मै बहाऊँ अश्रु तो तुम मुस्कुराना  !

जान लूँ मै भी कि तुम कैसे शिकारी,
चोट कैसी तीर कि होती तुम्हारी,
इसलिए घायल ह्रदय लेकर खड़ा हूँ
लो लगाओ साधकर अपना निशाना !

एक भी अरमान न रह जाए मन में,
और, न मचले कोई आंसू नयन में,
इसलिए जब मैं मरूं तब तुम घृणा से,
एक ठोकर लाश पर मेरी लगाना !
                                            - गोपालदास नीरज

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