Thursday, November 29, 2012

पिघले नीलम सा बहता ये समां

पिघले नीलम सा बहता ये समां ,
नीली नीली सी खामोशियाँ ,
न कहीं है ज़मीन न कहीं आसमान ,
सरसराती हुई टहनियाँ  पत्तियाँ ,
कह रहीं है बस एक तुम हो यहाँ
बस मैं हूँ
मेरी सांसें हैं और मेरी धडकनें
ऐसी गहराइयां, ऐसी तनहाइयाँ
और मैं सिर्फ मैं
अपने होने पर मुझको यकीन आ गया...
                                  - जावेद अख्तर.

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